Kinkari Devi | Indian Activist and Environmentalist | किंकरी देवी | भारतीय कार्यकर्ता और पर्यावरणविद्

Kinkari-Devi

किंकरी देवी  (भारतीय कार्यकर्ता और पर्यावरणविद्) किंकरी देवी का जन्म 30 दिसंबर 1925 को सिरमौर, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता एक दलित जाति का निर्वाह किसान था। बचपन से ही उन्होंने काम करना शुरू किया।

उनकी शादी बहुत कम उम्र में हुई थी और कुछ समय बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। देवी की मृत्यु 30 दिसंबर 2007 को चंडीगढ़, भारत में 82 वर्ष की आयु में हुई। महात्मा गांधी के आह्वान पर ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रेरित होकर किंकरी देवी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय भागीदारी की और स्वतंत्रता आंदोलन में उत्कृष्ट योगदान दिया।

उन्होंने विभिन्न प्रदर्शनों में हिस्सा लेकर और आम जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति चेतना जागृत करने का महत्वपूर्ण काम किया। इसके चलते अंग्रेज़ी हुकूमत ने उन्हें कई बार गिरफ़्तार कर 9 वर्षों तक जेल में भी रखा। जेल से रिहाई के बाद भी उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना जारी रखा।

भारत की आज़ादी के बाद, किंकरी देवी ने अपने समुदाय की उन्नति के लिए काम करना नहीं छोड़ा और उन्होंने 1952 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव जीतकर राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई। हिमाचल प्रदेश के लिए योगदान किंकरी देवी एक बहुत बहादुर महिला थीं, जिन्होंने अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में अवैध रूप से खनन और चट्टानें खोदने वाले लोगों के खिलाफ आवाज उठाई थी।

भले ही वह पढ़-लिख नहीं सकती थी, फिर भी उसने अपने समुदाय में बदलाव लाने और सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की। हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में चूना पत्थर व्यापार तेजी से फैलने लगा। दरअसल 1980 के दशक में दून घाटी की खदानें बंद हुई और उसके बाद व्यापारियों ने इस जिले का रुख किया खनन की वजह से इलाके का पानी दूषित होने लगा, खेती की जमीन कम उपजाऊ होने लगी, जंगल कम होने लगे, गैरजमिदाराना तरीके से हो रहे खनन के विरोध में किंकरी देवी ने आवाज उठाई और खनन की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक करना शुरू किया।

किंकरी देवी ने सबसे पहले आसपास के इलाके में रहने वाले लोगों की सूक्त चेतन को जगाया। इस तरह की किंकरी देवी और खनन माफिया के बीच जंग शुरू हुई। 1987 में किंकरी देवी ने स्थानीय वालंटियर ‘ग्रुप पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ की मदद से शिमला हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की यह याचिका 48 खदान के मालिकों के खिलाफ थी जो गैरजमिदाराना तरीके से चूना पत्थर खनन कर रहे थे।

जब किंकरी देवी को उनकी जनहित याचिका पर कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने शिमला जाकर 19 दिनों तक अदालत के सामने भूख हड़ताल पर बैठने का निर्णय लिया। किंकरी देवी की प्रयासों ने सफलता प्राप्त की और अदालत ने पहाड़ों को तोड़ने और खनन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। किंकरी देवी ने शिमला हाई कोर्ट के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपनी यात्रा जारी रखी, लेकिन वह अवस्थिति को रोकने के लिए तत्पर नहीं थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने किंकरी देवी के पक्ष में फैसला सुनाया।

किंकरी देवी शिक्षा के मामले में भी बहुत जागरूक थी, और उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय संगड़ाह गांव में बिताया। वहां, उन्होंने कॉलेज खोलने के लिए भी आंदोलन किया, और 2006 में इस गांव में कॉलेज की स्थापना हुई।  

सक्रियता किंकरी देवी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बतोर पर्यावरण संरक्षक पहचान मिली. 1995 में बीजिंग, चीन में हुए इंटरनेश्नल वीमेन कॉन्फ्रेंस में उन्हें शामिल होने के लिए बुलाया गया। इस कॉन्फ्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार रह चुकी हिलेरी क्लिंटन ने उन्हें दीप प्रज्जवलित करने के लिए बुलाया।

1999 में किंकरी देवी को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया । 30 दिसंबर, 2007 में किंकरी देवी ने दुनिया को अलविदा कह दिया । उनके गांव संगड़ाह उनके नाम पर एक मेमोरियल पार्क बनाया गया है । किंकरी देवी कहती थी, ‘मेरी क़िस्मत में शिक्षा नहीं थी लेकिन में शिक्षित होने की इच्छा की वजह से जितना परेशान हुई, में नहीं चाहती की दूसरे वो परेशानी झेलें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *